भारतीय जीवन मूल्य ही सभी संघर्षों को दूर कर सकते हैं- डा.कृष्णकांत चतुर्वेदी

सात दिवसों से जारी वैचारिक श्रृंखला के दौर का हुआ समापन


उज्जैन।
मानव जीवन बहुत ही संघर्षों से भरा हुआ है, किंतु भारतीय जीवन मूल्यों में वह शक्ति है जो इन संघर्षों को दूर करती है। हमें भारतीय जीवन मूल्यों की विशेषताओं को अपने जीवन में अपनाना होगा। महात्मा गांधी का संपूर्ण जीवन- चरित्र ही भारतीय जीवन मूल्यों का परिचय हैं। गांधी के लिए धर्म का अर्थ था जीवन जीने की शैली । हमारे कई दर्शन-ग्रंथों में उल्लेखित जीवन मूल्यों की एक लंबी सूची बनाई जा सकती है। गांधी का मानना था कि जो व्यक्ति सिर्फ बोलता है किंतु उसे अपने आचरण में नहीं लाता है, वह पशु के समान है। महात्मा गांधी जिन मूल्यों का आचरण नहीं करते थे, उनका प्रचार-प्रसार भी नहीं करते थे। सत्य उनके जीवन का आधार था। जीवन मूल्यों को अपनाएं बिना मनुष्य, मनुष्य नहीं होता और परिवार, परिवार नहीं होता। मनुष्यता से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। उक्त विचार कालिदास अकादमी उज्जैन के पूर्व निदेशक डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी ने भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित पद्मभूषण डॉ शिवमंगल सिंह 'सुमन' स्मृति बीसवीं अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला के समापन दिवस पर प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किए। 'भारतीय जीवन मूल्य और महात्मा गांधी' विषय पर अपनी बात रखते हुए डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी ने कहा कि आज जिस प्रकार सभी ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है, उससे यही लगता है कि हमारी आत्मा में ही पवित्रता का अभाव है। महात्मा गांधी ने आत्मा की पवित्रता का महत्व सभी को समझाया था। उन्होंने अहिंसा को एक साधन व शस्त्र के रूप में अपनाने का ऐतिहासिक प्रयोग किया। गांधी में दूसरों की पीड़ा को स्वयं महसूस करने का भाव था। उनके व्यक्तित्व में वह विशेषता थी कि उनके संपर्क में जो भी आते थे वे भी जीवन मूल्यों को अपने जीवन में अपना लेते थे।


     समारोह की अध्यक्षता करते हुए चिंतक, विचारक, पूर्व कमिश्नर शहडोल, रीवा संभाग डॉ. अशोक कुमार भार्गव ने कहा कि गांधी एक युग दृष्टा थे। स्थाई शांति और वैश्विक शांति का हल गांधी के विचारों में ही समाहित है। मानव जाति के लिए जो भी शुभ है वही नैतिक मूल्य है और इनमें समयानुसार परिवर्तन होता है। गांधी बहुत ही निष्ठा के साथ जनभावना का सम्मान करते थे। वह जनसेवक के रूप में एक बहुत बड़ा उदाहरण है। गांधी में लोगों के हृदय परिवर्तन करने की क्षमता थी। गांधी का मानना था कि अहिंसा की शक्ति हिंसा से कहीं अधिक है। गांधी गांव को भारत की आत्मा मानते थे और उनके विकास की बात करते थे। वह सुई जैसी छोटी वस्तु का भी समुचित उपयोग करने में विश्वास करते थे। गांधी ने यह सिखाया कि जीवन मूल्यों को किस तरह से जीवन में अपनाना चाहिए ।

    इन प्रेरक व्याख्यानों के साथ बीसवीं अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला का समापन हुआ। आरंभ में संस्थाध्यक्ष श्री कृष्ण मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डॉ शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी की तस्वीर पर माल्यार्पण कर सम्मुख दीप प्रज्वलित किया

और अपने अपार समर्थन से बीसवीं अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला को सफल और सार्थक बनाने के लिए उज्जैन के सभी बौद्धिकजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सीमा दुबे ने किया।

इस अवसर पर सुश्री शीला वैद्य, डॉ प्रदीप सिंह पवार, श्री रमेश सुभागा, श्री मोहन नागर, एडवोकेट रशीद उद्दीन, शेख नियाज मोहम्मद, श्री विष्णु कुमार सुनहरे, श्रीमती कौशल्या सुनहरे, खालिक मंसूरी एडवोकेट, प्रोफेसर एनके गर्ग, श्री श्याम सिंह सिकरवार, श्री बाल कृष्ण शर्मा, श्री अनिल गुप्ता, डॉक्टर सुमीत शकरगायें सहित बडी संख्याग में बौद्धिकजन उपस्थित थे। व्याख्यानमाला को डिजिटल प्लेटफॉर्म एवं रेडियो दस्तक 90.8 एफएम पर भी सुना गया। 

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