हर घड़ी वो जाने क्या क्या सोचता है
मुझको मुझसे भी अधिक जो चाहता है
लूट कर दौलत अमीरों से हमेशा
क्यों ग़रीबों में ही हरदम बाँटता है
छोड़ कर कोई गया है पथ में जब से
दर्द से रिश्ता हमारा जुड़ गया है
क्या करूँ उपचार इसका कुछ बताओ
दिल के भीतर शूल आकर चुभ गया है
दर्मियाँ अपनों के हूँ मैं तो अकेला
किस तरह की जाने ये कैसी सभा है
बलजीत सिंह बेनाम, हिसार (हरियाणा)
मोबा.9996266210