दरिंदे, राक्षस, हैवान, शैतान, नरपिशाच...... शब्द नही हैं मेरे पास उस कथित "मानव" के प्रति अपनी घृणा व्यक्त करने के लिए जिसने एक बेजुबान जानवर के प्रति वह व्यवहार किया जिसे "पशुवत" भी नही कह सकते क्योंकि पशु तो अक्सर मानव के प्रति "मानवीयता" का भाव प्रदर्शित करते देखे गए हैं। ऐसे व्यवहार को तो राक्षसी या दानवीय ही कहा जाना समीचीन होगा।
घटना देश के सर्वाधिक साक्षर राज्य केरल की है। एक गर्भवती हथिनी अपनी क्षुधा को शांत करने की गरज से जंगल छोड़कर गाँव मे आ जाती है। उसे क्या मालूम था मानव कहे जाने वाले लोगों की बस्ती में उसकी क्षुधा शांत करने के लिए उसे कोई ग्रास नही देगा बल्कि उसे ही काल का ग्रास बनने पर विवश कर दिया जाएगा।
गाँव में भूखी हथिनी के साथ किसी ने दानवीय कृत्य किया और उसे वह पाइनापल (अनानास ) खाने को दिया जिसमें जलते पटाखे भरे थे। पटाखे हथिनी के मुँह में फटे और उसका मुँह बुरी तरह जख्मी हो गया। दर्द से कराहती हथिनी अपने मुँह के जख्म व जलन लिए यहाँ-वहाँ भटकती रही लेकिन उसने पशुता नही दिखाई, किसी को भी रत्ती भर नुकसान नही पहुँचाया। भटकते हुए वह एक नदी के समीप पहुँची। शायद वह मुँह की जलन मिटाने के लिए पानी ही तलाश रही थी। वह नदी में उतर कर अपना मुँह पानी मे डुबोकर तीन दिन लगातार भूखी खड़ी रही। वन विभाग के कर्मचारियों को खबर लगी तो उन्होंने हथिनी को नदी से निकालने के भरसक प्रयास किए लेकिन वह बाहर नही आई और अंततः अपने प्राण त्याग दिए।
घटना बीते माह के अंतिम सप्ताह की है लेकिन हमारे सामने तब आई जब हथिनी को बाहर निकालने के प्रयास करने वाले वन विभाग के एक अधिकारी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में इसका विवरण दिया।
सच, मानव में किस हद तक दानवीय प्रवत्ति बढ़ती जा रही है, इस बात का बयान यह दर्दनाक, भयावह, वीभत्स, क्रूरतम घटना कर रही है।
जब से इस अमानवीय-दानवीय, शरीर में सिहरन पैदा करने वाली घटना के बारे में जानकारी मिली है, आहत हूँ, द्रवित हूँ, व्यथित हूँ, बेचैन हूँ। जब तक हथिनी के हत्यारों की पहचान कर उन्हें पकड़ा नही जाएगा और घृणित अपराध की सजा नही दी जाएगी, हथिनी के मुँह के दर्द की तड़प मेरे अंतरतम में महसूस होती रहेगी और मेरी आत्मा चीत्कार मारती रहेगी।
गर्भवती हथिनी की दिवंगत आत्मा की शांति की प्रार्थना परमपिता परमेश्वर से करता हूँ।
✍ योगेन्द्र माथुर - लेखक, पत्रकार व चिंतक