बुझे दीपक को दीपक से जलाने की ज़रूरत है।
उजाला हरसू यूँ हमको बढ़ाने की ज़रूरत है॥
हमारा घर जला देगें वो मिलकर आँधियों से कल।
चिरागों की हमें कुछ लौ घटाने की ज़रूरत है॥
जलाई एक ही दीपक ने घर की चिलमनें, तो क्या?
हमें सारे चिरागों को बुझाने की ज़रूरत है?
नदी है इसलिये सबको बताती है नदी हूँ मैं।
समुन्दर को समुन्दर हूँ बताने की ज़रूरत है?
वो जितने चाँद हैं इतराना ख़ुद पे भूल जाएगें।
तुम्हें अपना ज़रा घूँघट उठाने की ज़रूरत है॥
किनारों ने समुन्दर को रखा है घेर कर वरना!
वो क्या करता ? तुम्हें क्या ये बताने की ज़रूरत है?
तेरा जो नाम है तेरी फ़कत इक आई.डी. है वो।
बता फिर नाम क्या तुझको कमाने की ज़रूरत है॥
किताबें पढ़ के भी इंसा अगर हम बन नहीं पाये।
तो फिर ऐसी किताबों को जलाने की ज़रूरत है॥
- अनिल श्रीवास्तव 'ज़ाहिद'