ज्ञान चक्षु खोल
प्रभु मेरी विनती सुन,
मैं अधम अज्ञानी,
दे ज्ञान चक्षु खोल।
वचन में न रहे कटुता,
मैं मीठा मीठा बोलूं,
मिठी मिश्री घोल।
कुपथ मैं चल रहा हूं,
सुपथ ही चल सकूं,
कुछ तो मुझको बोल।
छल कपट झूठा स्वार्थी
लोभी दुनिया,
सत्य इमान गया डोल।
त्याग सेवा मानवता से,
धरम करम दया भाव से
मन कर दे अनमोल।
प्रभु सुमति, सुसंस्कृति दे,
सद्विचार, सद्भाव दे,
दे सदाचार पट खोल।
प्रभु मेरी विनती सुन,
मैं अधम अज्ञानी,
दे ज्ञान चक्षु खोल।
- जुगेश चंद्र दास