रात्रि काल में फैले अंधकार को
हटाने के लिए अपनी लालिमा
सुनहरी किरणों के माध्यम से
इस धरा को सुगन्धित पुष्पो
की सुरभित करते हुवे आखिर ...ये है कौन। 1
मंद मंद पवन के वेग से
वायु एवम प्रकाश को
जल,थल नभ में विचरण
करने के लिए ,अपने प्रकाश रूपी
पंखों को फैलाते हुवे।.आखिर... ये है कौन। 2
हिमालय की विशालकाय
बर्फीलीचट्टानों को हर रोज
अपनी रश्मि के तेज से
गर्मी से पिघलाकर,जल कण,बनाकर
पानी का रूप देते हुवे,.....आखिर ये है कौन। 3
गंगा नदियों,का अमृत रूपी जल
बनने के लिए,
कल कल बहता हुआ
हर घर,हर खेत खलियान में ,तालाब,में
कुवे में पहुच जाता हूं। ...आखिर..ये है कोन 4
इस सृष्टि को प्यासा बनाकर ,
हर प्राणी में प्यास बनकर
जल रूप में प्राणिमात्र
में में समा जाता हूं।......आखिर.ये है कौन। 5
हर प्राणी को जीवन व्यापन
करने का में ही माध्यम बन जाता हूं।
हर प्राणियों में क्षुधा बनकर, अपनी ही
शक्ति से में अग्नि रूप में प्रकट होकर
अपनी ही वनस्पति से
इंसानों द्वारा भोज्य पदार्थ
बनाकर, में हर रोज अन्न कण बन
फूला नही समाता हु।..आखिर...ये है कौन। 6
हर प्राणी को में हसता हुआ जगाता हु
हर प्राणी को दोनों समय भोजन
उपलब्ध कराता हु।
दिन रात कड़ी मेहंनत करने वालो का
में भाग्य बनकर
उन्हें सही राह दिखता हु।....ये है कौन। 7
इसीलिए में अलसुबह हर रोज
जनमानस से मिलने का आता हु
हर रोज में नया सवेरा देखता हूं
दिखलाता हु। हर रोंज में नया
संन्देश प्रदान करता जाता हूं
हर रोज में नई राह बनकर
नई राह दिखाता हु।.......ये है कोन। 8
में ही हर मानव में विधमान
जीवन शक्ति बन प्राणियों से
नित नए कर्मो के करने
नई प्रेरणा प्रदान करता जाता हूं ...ये है कोन। 9
में ही राजा बनकर
अधर्म पाप की नीति
अपनाने वालो को
सही राह दिखाने के
लिये उसे आकाश
से जमी पर ला पटककर
उसका गर्व चूर चूर
कर देता हूं।
उसे सत्य पथ की
प्रेरणा प्रदान करता हु।। ये है कौन। 10
में ही प्राणिमात्र में आत्मा
ईश्वर बन।बिद्यमान हु।।
सही गलत का अक्सर
में ही फैसला देता हूं।
रंक को कर्मो के माध्यम
से में ही राजा बनाता हूँ।। ये है कौन। 11
- कवि एवं लेखक : चित्रांश विजॉय निगम (सेवानिवृत्त कर्मचारी)