भारतीय समाज के लिए महात्मा फुले का योगदान


   महान समाज सुधारक सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महिला शिक्षा के जनक, दलित एवं पिछड़ी जाति के मसीहा तथा अनेकों नामों से जाने जाने वाले महात्मा ज्योति राव फूले का जन्मदिन 11 अप्रैल 1827 को पुणे में गोविंदराव माली के घर हुआ। ज्योतिराव के जन्म के एक वर्ष बाद ही उनकी माता चिमना बाई की मृत्यु हो गई । उनके लालन-पालन की जिम्मेदारी उनकी मौसेरी बहन सुगना बाई ने की उनका संपूर्ण जीवन मानव कल्याण , उत्थान और समाज सेवा परोपकार, आविष्कार, राष्ट्र सेवा में समर्पित कर दिया। जोतिराव का विवाह 1840 में सावित्रीबाई नाय गांव जिला सतारा निवासी के साथ हुआ। सावित्रीबाई की उस समय 9 वर्ष की आयु थी तथा पूर्ण निरीक्षर थी ज्योतिराव ने सावित्रीबाई को शिक्षित करने की ठान ली ज्योति राव दिन में विद्यालय में अध्ययन करते और रात्रि में सावित्रीबाई फुले को शिक्षित करते सावित्रीबाई कुशाग्र बुद्धि की थी इसलिए उन्हें अध्ययन करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। 

इस प्रकार फूले दंपती की मेहनत रंग लाई और मात्र 17 वर्ष की अवधि में सावित्रीबाई देश की प्रथम प्रशिक्षित अध्यापक बन गई।

      सावित्रीबाई के अध्यापक बनने के पश्चात फुले दंपति ने पूना की भिंडे की हवेली में देश की पहली बालिका पाठशाला जनवरी 1848 में खोली उस समय बालिकाओं के शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी और महिलाओं का सामाजिक स्तर बहुत गिरा हुआ था जिससे स्त्री का मान सम्मान नहीं होता । इस बात को ध्यान में रखकर उन्होने अभिभावकों को समझा कर बड़ी मुश्किलों से 6 बालिकाओं को तैयार किया और उनके शिक्षण की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले ने ली। किंतु यह बात समाज के लोगों को रास नहीं आई सावित्रीबाई जब पढ़ाने जाती तो उन पर गंदगी कीचड मेला फेंक कर उनके वस्त्र खराब कर देते हैं तथा उन्हें बुरी बुरी गालियां देते फिर भी सावित्रीबाई ने अपने लक्ष्य से हिम्मत नहीं हारी और सावित्रीबाई विद्यालय में जाकर वस्त्र बदलकर अध्यापन कराती रहती उसका यह परिणाम हुआ कि अट्ठारह सौ बावन तक उन्होंने बालिकाओं के 18 विद्यालय खोल दिए । इस प्रकार सावित्रीबाई का महिला उत्थान का कार्य प्रारंभ हुआ ।

        फूले दंपति ने समाज में आई कुप्रथाओं का घोर विरोध किया तथा कुप्रथाओं से निकालने के लिए अनेका अनेक प्रयत्न किए इसमें शुद्र अति शुद्र जातियों के लिए अपने घर के कुओं से पानी भरने की अनुमति दी विभिन्न स्थानों पर विद्यालय खोलकर सभी जातियों के बच्चों को शिक्षित करना , विधवा मुंडन प्रथा बंद करने हेतु नाइयो से सहयोग लेकर इसे बंद कराया सती प्रथा बंद करवाना विधवाओं का पुनर्विवाह कराना महामारी के समय समाज सेवा तथा उनकी भोजन व्यवस्था कराना धार्मिक आडंबर, अंधविश्वास ,पाखंडवाद, रूढ़ीवादी, छुआछूत, जातिवाद से मुक्ति प्रदान कर समाज को आगे बढ़ाने मे जीवन भर कार्य किया।

      ज्योति राव ने मजदूरों का शोषण देखते हुए उन्हें संगठित करने हेतु देश की प्रथम मजदूर यूनियन की स्थापना कर मजदूरों को न्याय दिलाया । ज्योति राव एक कुशल उद्यमी थे 18वीं शताब्दी में जब टाटा बिरला जैसे उद्योगपति आयकर के रूप में 20हजार देते थे उस समय वह 2 लाख का आयकर चुकाते थे उनके पास 200 एकड़ भूमि थी जिस पर समय-समय पर कृषि उन्नत तकनीकी तैयार कर कृषकों को आगे बढ़ाने हमें सहयोग दिया तथा उन्होंने उस समय अनेक पुल बांध तथा भवन निर्माण कराएं जिसमें खड़वासला डैम, मुंबई नगर निगम ,मुंबई बीं.टी. आज भी पूर्ण रूप से सुरक्षित होकर जोतिराव के गुणगान कर रहे हैं ।

      जोतिराव का साहित्य क्षेत्र में अपना महत्व योगदान रहा उनके साहित्य की आज भी देश विदेश में विशिष्ट पहचान है। जोतिराव फूले एवं सावित्रीबाई फुले ने जीवन भर राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया इसी से प्रेरित होकर डॉ. भीमराव अंबेडकर ने उनको गुरू माना एवं महात्मा गांधी ने उनके मार्ग पर चलकर राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य सहयोग किया।

     हम भारत सरकार से यह मांग करते हैं कि बहु आयामी प्रतिभा के धनी एवं मानव कल्याण समतामय समाज बनाने के प्रयत्न किए उसी आधार पर भारत सरकार फूले दंपति को अविलंब भारत रत्न देने की घोषणा करें।

  जय जय महात्मा फुले - जय जय सावित्रीबाई फुले        

    – हरगोपाल भाटी, अन्नपूर्णा मंदिर, बड़ा बाजार झालावाड़ (राजस्थान)

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