श्राद्ध पक्ष में बढ़ जाता है गयाजी तीर्थ का महत्व
गया/बिहार। बिहार की धर्मनगरी गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले की शुरुआत हो गई है। धार्मिक महत्व के कारण गया को श्रद्धालु ‘गया जी’ भी कहते हैं। गया के पितृपक्ष मेले में देश-विदेश से हजारों की संख्या में पिंड दानी अपने पूर्वज का पिंड दान करने आते हैं और तर्पण के माध्यम से उन्हें तृप्त करते हैं। गया जिसे विष्णु नगरी कहा जाता है, वहां के बारे में मान्यता है कि वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करने पर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
फल्गु नदी पर बने सबसे बड़े रबर डैम का सीएम नीतीश ने किया लोकार्पण : स्टील ब्रिज के माध्यम से लोग विष्णुपद से गया जी डैम होकर सीताकुंड जा सकेंगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही रबर डैम का नाम गयाजी डैम रखा है। 312 करोड़ की लागत से बने डैम के पास तीन से चार फीट पानी उपलब्ध रहेगा।
गया जी में इसलिए है पिंडदान का महत्व : पितृपक्ष में वैसे तो पिंडदान किसी भी पवित्र स्थान पर किया जा सकता है लेकिन बिहार के गयाजी में पिंडदान के विशेष आर्थिक महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से 108 परिवारों और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और पितरों को मोक्ष फल की प्राप्ति होती है।
गया में इस वर्ष पिंडदान करने आने वाले श्रद्धालु सूखी फल्गू नदी में नहीं बल्कि कल-कल बहती फल्गू के जल से अपने पूर्वजों का तर्पण और आचमन कर सकेंगे। गया में भारत का सबसे बड़ा ‘गया जी’ रबर डैम बनाया गया है। जिसके बाद फल्गू नदी में अब 10 फीट तक पानी है।
भगवान राम ने भी किया था यहां पिंडदान : कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था। गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था, इनमें से अब 48 ही बची हैं, इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। पिंडदान के लिए प्रतिवर्ष गया में देश-देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं।
पिंडदान के जरिए पूर्वजों को भोजन : पितृ पक्ष में पिंडदान पूर्वजों और उनके दिए संस्कारों को याद करने का संकल्प है। इसमें पितरों (पूर्वजों) को तर्पण यानी जलदान और पिंडदान यानी भोजन का दान श्राद्ध कहलाता है। गया पिंडदान के लिए सबसे पवित्र भूमि माना गया है। यहां श्राद्ध व तर्पण से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि मृत्यू के बाद भी भौतिकवादी दुनिया और परिजनों के लगाव की वजह से आत्मा यहीं कहीं रह जाती है, इससे आत्मा को कई तरह के कष्ट भोगने पड़ते हैं, तब उन्हें मुक्ति दिलाने के लिए पिंड दान से कराया जाता है। गयाजी इसके लिए सबसे श्रेष्ठ स्थान है।