आज से करीब एक साल पहले 20 अगस्त 2020 को बहुत ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था में एक 17 वर्ष के नव युवक मरीज को मेरे पास लाया गया। वह स्वयं चल- फिर नहीं सकता था क्योंकि उसके बाम अंग लकवा ग्रस्त हो गए थे। वह शारीरिक पीड़ा और दुर्बलता के कारण निरंतर कराह और रो रहा था। साथ ही अपने परिजनों को अपशब्द भी बोल रहा था। पूछने पर उसके अटेंडेंट्स ने बतलाया की उसे ब्रेन कैंसर हो गया है तथा वाराणसी और पीजीआई लखनऊ के चिकित्सकों ने बताया है कि अब वह पांच सात दिन से ज्यादा जिंदा नहीं रहने वाला।वे मिर्जापुर के एक चिकित्सक कि राय पर मरीज को लेकर मेरे पास आए थे।
रेडियोलॉजिकल फाइंडिंग-
आफ फर्स्ट एम आर आई ब्रेन- कंसिसटेंट विथ मैलिगनेन्ट नियोप्लाज्म लाइक्ली हाईग्रेड ग्लायोमा।
अल्ट्रासाउंड एबडामेन - कोई खास गड़बड़ी नहीं।
सामान्य लक्षण--
1- चिड़चिड़ा, उद्दंड, झल्लाह से भरा हुआ, माता-पिता और साथ आए हुए सभी लोगों को भला बुरा कहना। सब पर आरोप लगाना, वह सभी उसे जान से मारना चाह रहे हैं। एकदम अकेले रहने की इच्छा।
2- ब्रेन कैंसर का उसमें कोई भय नहीं, वह हीरोइन और गाजा की मांग कर रहा था। उसका कहना था कि यह मिलेगा तभी ठीक होगा।
3- लेफ्ट साइडेड हेमीप्लेजिया। खासतौर से हाथ पैर और मुंह पर लकवा का असर। चल नहीं सकता था, हाथ नहीं उठा सकता था, आवाज में लड़खड़ाट थी किंतु खा पी सकता था।
4- पूरे शरीर में अत्यधिक पीड़ा, टूटन अकड़न एवं शक्तिहीनता। पूरे शरीर में लाठी से पीटे जाने जैसा दर्द।
5- खाने-पीने से अरुचि। कब्ज, रोज लैट्रिन ना होना।
कभी-कभी उल्टी मिचली भी होना।
6- रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी, प्लेटलेट काउंट कम होना।
7-अनिद्रा। कभी-कभी चक्कर आना। बिना किसी के पकड़े बैठ न पाना।
8-चटपटी, खट्टी, मिर्च मसाले वाली चीजें खाने की इच्छा।
9-प्यास सामान्य।
10- याददाश्त ठीक।
11- दुबला-पतला, गेहुआं रंग, काले बाल बीमार होने से पहले थी करीब करीब यही कांस्टीट्यूशन।
मेरे द्वारा प्राप्त की गईं जानकारियां--
1-घर के सगे संबंधियों में कोई कैंसर का मरीज नहीं
टी. बी. अथवा गठिया का मरीज भी नहीं।
2- बचपन में माता-पिता द्वारा उस पर ध्यान कम देना।
3-जब वह मां के पेट में था किसी कारणवश मां तनावग्रस्त थी ।
4- बचपन से ही डांट फटकार ज्यादा सुनने के कारण घर के लोगों से बचकर रहने की आदत पड़ गई। तथा गलत संगत में पड़कर दस ग्यारह साल की उम्र से ही बीड़ी-सुर्ती की आदत पड़ी। जो 14 साल की उम्र में आते आते गांजा और हीरोइन में परिवर्तित हो गई।
जिसके कारण उसकी खूब मार पिटाई होती रही।
नशा के लिए झूठ बोलने और चोरी की प्रवृत्ति भी। नशा के लिए कई बार छत से भी कूद गया था।
ट्रीटमेंट प्लान-- इस रोग से लड़ने के लिए रणनीति बनाना रानी आवश्यक था। क्योंकि शीर्षस्थ एलोपैथ्स उससे असाध्य और शीघ्रताशीघ्र मृत्यु कारक बताया गया था। रोग की जड़ तक पहुंची कर मुख्य रोग निवारक होम्योपैथिक औषधि को ऐसे कॉम्प्लिकेटेड अवस्था में सिर्फ टोटैलिटी आफ सिंपटम के आधार पर संभव नहीं था जैसा कि अनेकों पूर्ववर्ती चिकित्साविदों का मानना है। इसे उन्होंने अपने अपने ढंग से बचाने और करने का प्रयास किया है किंतु एक सर्वमान्य वैज्ञानिक परिभाषा दे पाना अब तक संभव नहीं हो सका है। जिसके कारण भविष्य की सबसे बड़ी जन कल्याण कारक चिकित्सा पद्धति अब भी पूर्ण चिकित्सा पद्धति का दर्जा नहीं पा पाई है। टोटलिटी आफ सिम्टम्स के आधार पर एक औषधि का चुनाव डॉक्टर हेनिमैन प्रतिपादित, कैनलाइजेशन द्वारा प्रमुख औषधि तक पहुंचा जाए, मानसिक लक्षणों के आधार पर चुनाव किया जाए, पैथोलॉजी के अनुसार दवा चुना जाए, रिपेट्राईजेशन किया जाए, अथवा प्रिडिक्टिव होम्योपैथी के प्रवर्तक डॉ विजयकर की तरह मुख्य औषधि को प्रिडिक्ट किया जाए। मेरा मानना है कि उपरोक्त हर पद्धति में मुख्यतः मूल कारक लक्षण को ढूंढना होता है जिसके आधार पर औषधि, उसकी शक्ति और उसका रिपिटीशन तय होगा।
मैंने जो चुना-
1- मेरा मानना है कि उपरोक्त केस स्टडी में गर्भावस्था में मां का तनाव ग्रस्त होना गर्भस्थ शिशु की सामान्य मस्तिष्क विकास में बाधक हुआ। जन्म के बाद भी बच्चे को विकसित होने का सही माहौल नहीं मिला जिसके कारण वह एकाकी हो गया और अपने विवेक के आधार पर उसने जीने का रास्ता चुना। नशाखोरी से रोकने के लिए उसे बार-बार मारा पीटा गया जिसके कारण उसके मन में गहरी ग्रंथियों का उत्पन्न होना सामान्य बात थी। और इसी ने बाद में चलकर ब्रेन ट्यूमर का रूप लिया। मूलतः यही सोरा था जो बाद में कार्य रूप में सिफलिस और परिणाम स्वरूप साइकोसिस में परिवर्तित हुआ इस प्रकार यहां होम्योपैथी के तीनों मियाज्म एकजुट हुए।
इसके लिए मेरे द्वारा जो दवा चुनी गई वह थी 'बेराइटा कार्ब' रोग शक्ति के आधार पर दवा की शक्ति का चुनाव हुआ 1000 एवं दूसरी खुराक देने का समय चुना गया एक महीना। उपरोक्त औषधि प्रिडिक्टिव होम्योपैथी के नियमों के आधार पर चुनी गई। इसकी सहयोगी औषधि के रूप में मैंने एक दवा चुनी 'कलकेरिआ आयोड 200' जिसे पैथोलॉजिक लक्षण के आधार पर चुना गया।
किंतु रोगी के पास जीवित रहने के लिए इतना समय नहीं था और मुख्य दवा की मार्ग में बाधाएं ज्यादा थीं इसके लिए कैनलाइजेशन जरूरी था। यहां 2 लक्षण प्रमुख थे पहला मरीज की हीरोइन और गांजा पीने की अदम्य इच्छा , दूसरा उसकी प्रतिरोध से प्रतिक्रिया स्वरूप पैदा हो रही अत्यधिक शारीरिक पीड़ा।
इसके पहले लक्ष्मण के लिए मैंने दवा चुनी मारफीनिनम 200, एवं दूसरे लक्ष्मण के लिए मैंने जो दवा चुनी वह थी मैक्रोटिनम 200। जिनकी सहयोगी औषधि के रूप में एम डी होम्यो लैब द्वारा निर्मित सिरप जो सिर्फ एक औषधि एवेना सटाइवा मदर टिंकचर के प्रयोग से बनाई गई है, को चुना गया।
उपरोक्त 3 औषधियों को रोज रात में सोते समय एक-एक दिन के अंतराल पर एक खुराक। अर्थात पहले दिन पहली, दूसरे दिन दूसरी और तीसरे दिन तीसरी दवा।
अब टोटैलिटी ऑफ द सिम्टम्स के आधार पर जो दवा बनती थी वह थी कास्टिकम 1000, रोग कारकों की बारंबारता के आधार पर इसके रिपिटिशन को तय किया गया रोज सुबह दोपहर शाम।
और अंत में 'कैलकेरिया फ्लोर 6X' बायोकेमिक
को एक अन्य सहयोगी औषधि के रूप में चुना गया। क्या-क्या गोली दिन भर में 3 बार रोज।
इस प्रकार औषधि निदान निम्न वत हुआ--
1-बेराइटा कार्ब 1000 एक खुराक महीने में एक बार। जिस दिन इसे देना था उस दिन और अगले 2 दिन कोई अन्य दवा नहीं दी जानी थी।
2-कास्टिकम 1000 रोज सुबह दोपहर शाम पूरे महीने पहली दवा के 3 दिन छोड़कर।
3-कैलकेरिया आयोडेटम 200
4-मारफीनिनम 200
5-मैक्रोटिनम200
3,4,5 नंबर की दवाओं को एक-एक दिन एक खुराक रात में सोते समय क्रमशः।
6-कैलकेरिया फ्लोर 6X चार चमोली रोज तीन बार
(एक दवा बेलाडोना 200 अत्यधिक पीड़ा की अवस्था में इमरजेंसी के लिए दी गई थी जल्दी-जल्दी खाने के लिए, जिसकी कभी जरूरत नहीं पड़ी।)
उपरोक्त औषधियां उपरोक्त क्रम में साल भर चलती रहीं बिना किसी परिवर्तन के।
परिणाम- मरीज एक हफ्ते में नहीं मरा। आज दवा खाते करीब 1 वर्ष हो गए वह 90% से ज्यादा रिकवर हो चुका है। ब्रेन ट्यूमर अब एकदम नहीं है। कैंसर के भी कोई लक्षण नहीं हैं। चल- फिर रहा है खा- पी रहा है। शरीर में कोई पीड़ा नहीं है। लकवा ग्रस्त बाम हाथ पैर का पूरी तरह ठीक होना अभी थोड़ा बाकी है। जो कुछ दिनों में अवश्य ठीक हो जाएगा।
टिप्पणी-- पिछले 1 वर्ष तक किसी अन्य चिकित्सा पद्धति की कोई औषधि नहीं दी गई। क्योंकि यह मान लिया गया था की अब यह मरीज कुछ दिन का ही मेहमान है जिसे स्वयं मरीज मरीज और उसके माता- पिता भी मान चुके थे मैंने उपरोक्त प्रयोग करने के लिए अपने स्वतंत्र पाया। यह होम्योपैथी की वैज्ञानिकता सिद्ध करने के लिए आवश्यक था। जो सिद्ध होती प्रतीत हो रही। हां इस प्रयोग से होम्योपैथी के कई पुराने सिद्धांत टूट रहे हैं जो होम्योपैथी एवं जन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद साबित होंगे।
महाराजगंज गाजीपुर उत्तर प्रदेश