आज याद आ गई वह बचपन की चिड़िया।
वही जो अपने साथी के साथ दिन भर,
अन्दर बाहर उड़ती फिरती।
लकड़ी की बल्ली पर अपना संसार बसाने को आतुर।
तिनका तिनका संजोती।
उसका साथी हरदम उसके साथ,
गिरे तिनकों को उठाता।
पर नीड़ तो वही बनाती।
हम बच्चे उसकी मेहनत को,
मिट्टी में मिलाने की हर सम्भव कोशिश करते।
गिरे तिनके उठा झट बाहर फेंक आते।
पर, ट्यूब लाइट, बल्ब या पंखे पर बैठी वह चिड़िया,
चुपचाप देखती हमारी इन शरारतों को,
और मानों हमें आगाह करती,
तुम चाहे फेंक दो तिनका, उजाड़ दो घोंसला
वह नही मानेगी, यूँ नही हारेगी।
उसे घर बनाना है, संसार सजाना है।
फिर जुट जाती, तिनके जमाती।
उसकी यह लगन हमें हरा देती,
हम दोस्ती का हाथ बढ़ाते और,
नीचे गिरे तिनके सम्भालते।
वह भी आश्वस्त हो उन तिनकों को उठा ले जाती।
फिर किसी सुबह, तेज चहचहाहट से हमारी नींद खुलती।
उसके घोंसले में साथी के अलावा एक चूजा भी होता,
जिसकी धीमी आवाज हमें अपनी और आकर्षित करती।
हम उसे देखना चाहते पर याद आती,
माँ की सख्त हिदायत।
"घोंसले को हाथ नही लगाना"।
अब चिड़िया तिनके नही दाने चुनती,
अपने उस प्यारे बच्चे के लिए।
चूजा भी उसे देख चोंच खोल चहकता।
फिर वह दिन भी आया,
जब चूजे ने पंख फड़फड़ाऐ।
उड़ने की कोशिश की, चिड़िया माँ ने उसकी मदद की।
हम बच्चे मूक दर्शक बन देखते ही रह गए,
और चूजा फ़ुर्र हो गया।
घोंसला खाली हो गया, घर में शांति हो गयी
घोंसले से तिनके रोज गिरते,
पर उन्हें सम्भालने वाली चिड़िया अब नही आती।
माँ ने घोंसला साफ कर दिया क्योंकि,
उन तिनकों से घर में कचरा होता।
आज वह सब मुझे याद आ रहा है,
क्योंकि मेरे घर के बच्चे भी बाहर निकल गए हैं, नई उड़ान भरने को।
घर खाली हो गया है,
घर घर नही लगता मौन हो गया है।
वह चिड़िया तो बैरागन थी,
अपने चूजे के उड़ते ही, घोंसला छोड़ चली गयी।
पर, पर मैं ऐसा नही कर पाती।
घर को सहेजती हूँ,
और बच्चों के आने का इंतजार करती हूँ,
क्योंकि, क्योंकि मै चिड़िया नही हूँ।