महिला दिवस विशेष - सावित्रीबाई फुले का महिलाओं के लिए योगदान - हरगोपाल भाटी


  वर्तमान समय में हम जो भारतीय महिलाओं की स्थिति देख रहे हैं क्या यह पूर्व में ऐसी ही रही होगी? उत्तर होगा नहीं। 18 वीं शताब्दी में भारत अनेक बुराइयां जैसे अशिक्षा अनाचार दुराचार, छुआछूत, वर्गभेद वर्णभेद वर्गसंघर्ष ,नारीउत्पीड़न ,अत्याचार। बैगार प्रथाएं जैसी अनेक कुप्रथाऐ चल रही थी। जिससे देश के दलित, पिछड़े वर्ग की महिलाएं बहुत दुखी थी।

    3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के किसान खंडोली नेवसे पाटिल के यहां पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम सावित्रीबाई रखा गया। सावित्रीबाई जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि की रही जब वह 9 साल की आयु आई तो उनका विवाह। 13 वर्षीय ज्योति राव फूले के साथ संपन्न हो गया। जोतिराव फूले विद्यालय में अध्ययन कर रहे थे और सावित्रीबाई अनपढ़ थी। ज्योति राव फुले ने सावित्रीबाई को शिक्षित करने का फैसला किया ज्योति राव दिन में अध्ययन करते और रात्रि में सावित्रीबाई फुले को अध्ययन कराते  इसी प्रकार सावित्रीबाई फुले 17 वर्ष की आयु में देश की प्रथम शिक्षिका बन गई।
      उस समय में भारत का शिक्षा स्तर बहुत कम था जब महिलाओं का शिक्षा स्तर शून्य था। उस समय महिलाओं के लिए कोई विद्यालय नहीं हुआ करते थे ऐसी स्थिति में फूले दंपति ने बालिकाओं को शिक्षा देने के लिए 1 जनवरी 1948 को बालिका विद्यालय खोला जिसमें पढ़ाने की जिम्मेदारी सावित्रीबाई ने ली किंतु उस समय महिलाएं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। स्त्री को पैरों की जूती समझा जाता था जब चाहो जब बदल लो महिलाओं को कठोर यातनाएं दी जाती थी इसी गंभीर परिस्थिति को देखते हुए फूले दंपति ने अभिभावकों से संपर्क किया, शिक्षा प्राप्त कराने के लाभ बताएं जिससे कुछ अभिभावकों ने अपनी लड़कियों को विद्यालय में भेजने की सहमति दी और पुणे के बुधवार पेठ में तात्या साहब धीरे के मकान में पाठशाला प्रारंभ हो गई। कट्टरपंथी विचारधारा वालों को यह बात रास नहीं आई।  वह सावित्रीबाई फुले जब विद्यालय जाती तो उन पर कीचड़, गंदगी, गोबर इत्यादि उनके वस्त्र पर डाल देते तथा गंदी गंदी गालियां देते। उसका कुछ भी असर सावित्रीबाई पर नहीं हुआ वह विद्यालय जाकर अपने वस्त्र बदलकर शिक्षा देना प्रारंभ कर देती। सावित्रीबाई के दृढ़ निश्चय का परिणाम हुआ कि कुछ समय में उन्होंने अट्ठारह विद्यालय प्रारंभ कर बालक- बालिकाओं के लिए शिक्षा के द्वार खोल दिये साथ ही रात्रि मे प्रौढो को शिक्षित करने के लिए प्रोढशाला खोल दी गई, इस प्रकार भारत में महिला शिक्षा प्रारंभ हुई।
     फूले दंपति ने शिक्षा के साथ-साथ उस समय चल रही कुप्रथा विधवा मुंडन, सती प्रथा ,बाल विवाह, पर्दा प्रथा ,अस्पृश्यता , विधवा पुनर्विवाह, विधवा प्रसूति गृह, बीमार व्यक्ति के लिए इलाज जैसे अनेक महत्वपूर्ण काम कीए जिससे पुरुषों और महिलाओं के बीच की दूरी सीमटती चली गई। जब महिलाएं शिक्षित होने लगी तो अपने अच्छे-बुरे के बारे में जानने लगी और बुराइयों से लड़ने के लिए संगठित होकर कुप्रथा को खत्म करने की ठानी जिसका असर आज हमें देखने को मिल रहा है। महिलाएं आज भी पुरुषों की बराबरी कर साथ-साथ हर क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। जैसे शिक्षा, व्यापार, उद्योग ,वाणिज्य, विज्ञान- प्रौद्योगिकी,सेना, पुलिस, चिकित्सा, परिवहन, अंतरिक्ष ,जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में बराबरी का दर्जा हासिल कर देश में उन्नति में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रही है।
      यह सभी कार्य सावित्रीबाई फुले की प्रेरणा स्वरुप हुए। सावित्रीबाई फुले ने अपना संपूर्ण जीवन महिला उत्थान के लिए लगाया और अंतिम समय 10 मार्च 1897 तक भी महिला  उत्थान के लिए कार्य करती रही। ऐसी महिला जिसने महिलाओं के लिए संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया उन्हें शत्-शत् नमन।
     संकलनकर्ता - हरगोपाल भाटी, अन्नपूर्णा मंदिर बड़ा बाजार, झालावाड़ (राज.)
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