पिता का छोटा सा घर
मानो भरा पूरा शहर
मां की लोरियां
बच्चों की किलकारियां
भाई बहनों की हंसी
दादा दादी का आशीर्वाद
आगत का आव भगत
पथिक को विश्राम
नन्हे से बक्से में
तह-तह बैठे
पाँव समेटे लोग
सलवटों से खुश
पिता की छाती आकाश
मां की बांहें क्षितिज
हर शब्द का अर्थ
हर अर्थ में खुशी
अब बच्चों का घर अपना है
माता- पिता के लिए सराय
बहनों के लिए चांद
भाइयों के लिए सपना है
एक बड़े से बक्से में
कुछ सिक्के झगड़ते हैं
('मुट्ठी भर भूख से' सन 2004 में लिखी मेरी एक कविता)
डॉ एम डी सिंह, महाराजगंज (गाजीपुर उत्तर प्रदेश-में पिछले पचास सालों से होमियोपैथी के चिकित्स्क के रूप में कार्यरत हैं)