सदी उन्नीस माह अगस्त, सैंतालिसवां साल।
पन्द्रह तारीख सजी, आजादी के भाल।।
लहरा रहा ध्वज तिरंगा, देखा जग ने जाग।
लाल किले के शिखर पर, गए फिरंगी भाग।।
जन गण मन पुलकित हुआ, छिड़ा देश का राग।
आजादी की धधकती, बुझी हृदय की आग।।
जो देश के लिए सर्वस्व ,चले गए कर दान।
देश नहीं उनका कभी, घटने देगा मान।।
रहे न मुक्त हाथ एक, मिले सभी को काम।
कहीं तब जा कर होगी, आजादी सरनाम।।
कपड़ा सबके देंह पर, छत सबके सर होय।
देश हुआ आजाद अब, तब ही माने कोय।।
जब बच्चा बच्चा देश का,पढ़ा लिखा हो जाय।
तभी मानिए पंचों हम, गए आजादी पाय।।
भूखा ना कोई रहे, अन्न- धन हो भरपूर।
तभी देश से मानिए, गई गुलामी दूर।।
भ्रष्टाचार जब तक यहाँ, देश कहां आजाद।
अभी आजादी बाकी, नहीं करें सिंहनाद।।
अंग्रेज देश छोड़ गए, दो हिस्सों में काट।
हमें जोड़ना है सुनें, उन्हें अभी भी साट।।
- डॉ.एम.डी.सिंह, पीरनगर, गाजीपुर (यू.पी.)
पिछले पचास सालों से ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी की चिकत्सा कर रहे हैं।