नई दिल्ली। कोरोनावायरस के बढ़ते खौफ के बीच दुनिया ज्यादातर लोग अपने-अपने घरों में कैद हो गए हैं। एेसे में सड़के, बाजार सब सूना है। लेकिन इन सबका अंदाज़ा आप किसी एक मोहल्ले को देखकर नहीं लगा सकते। ये खालीपन इतने बड़े स्तर पर फैल गया है कि धरती की तरंगें कम पड़ने लगी हैं। पूरी धरती पर शोर कम होने लगा है। धरती अब स्थिर हो गई है। धरती उतनी तेजी से नहीं कांपती जितनी तेजी से पहली कांपती थी। पृथ्वी की सतह पर होने वाली कंपन की निगरानी करने वाले वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से आने वाली आवाजों में काफी कमी देखी है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण दुनियाभर में हुए लॉकडाउन को बताया गया है।
बेहद छोटे स्तर के भूंकपों के भी चल रहा है पता
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इस समय जब पूरी दुनिया में लॉकडाउन है। हमारी धरती का कंपन कम हो गया है। यानी पूरी दुनिया में ध्वनि प्रदूषण इतना कम हो गया है कि अब भूकंप विज्ञानी बेहद छोटे स्तर के भूकंपों को भी भांप ले रहे हैं। जबकि, लॉकडाउन से पहले ऐसा करने में मुश्किल आती थी।
पृथ्वी में कम हुई कंपन
ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे ने सिस्मोमीटर की मदद से लंदन में जो डाटा एकत्रित किया है, उसमें देखा गया है कि इंसानी गतिविधियां कम होने के कारण पृथ्वी से आने वाली आवाजों में भी कमी आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि पृथ्वी से आने वाली कंपन की आवाज में कमी आने का सीधा कारण लॉकडाउन की वजह से लोगों का घर पर रहना है।
सिसमोमीटर्स से जुटाए गए आंकड़े
वैज्ञानिकों ने लोगों के घर में रहने से लंदन, पेरिस, ब्रसेल्स, ऑकलैंड और लॉस एंजेलिस में सिसमिक डिटेक्टर से वाइब्रेशन में कमी दर्ज की। सिसमोमीटर, भूकंपीय तरंगों के साथ मानव गतिविधियों से होने वाली ध्वनि को पकड़ने में भी काम आता है। इसमें इंडस्ट्री और ट्रैफिक साउंथ भी दर्ज होता है। ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे द्वारा पूरे लंदन के सिसमोमीटर्स से जुटाए गए आंकड़ों से पता चला है कि मानवीय गतिविधियों में कमी आने के साथ ही धरती पर शोर का स्तर कम हुआ है।
जानिए, क्या है सिस्मोमीटर : यह एक ऐसा यंत्र होता है जो सिस्मिक तरंगों को या कंपनों को मापते हैं। ये उपकरण पृथ्वी की सतह से उठने वाली कंपनों के अलावा इंसानी गतिविधियों, उद्योगों और ट्रैफिक की कंपनों की भी निगरानी करता है। इसमें काफी उच्च फ्रीक्वेंसी वाली आवाज सुनाई देती हैं।